*ज़िन्दगी और इंसान(मैं)* हम भी देखते हैं ऐ ज़िन्दगी तेरे इम्तिहान कितने बाकी हैं? थक गई थी चलते-२ राह में एक पल को, पर अब तो ये देखना है कि तेरा मुकाम कितना बाकी है? अब तो ये ज़िद्द है ज़िन्दगी में कुछ कर ग़ुज़रने की, अब तु भी तो देखे कि सीने में मेरे इन्तकाम कितना बाकी है? बुज़दिल हूँ मैं अगर हार गई तेरे सामने, मैं ये देखूँगी जरूर कि तेरा अंजाम कितना बाकी है? वो लौ ही क्या जो बुझ जाये हवा के झोंकों से,तुझे तो ये दिखाना है. कि मुझमें अभी जान कितना बाकी है? माना कि अक्ल थोड़ी देर में आयी है मुझे, पर अब तो तु मुझे बस इतना बता कि अभी तेरा काम कितना बाकी है? चलो माना कि ज़िन्दगी के इस दिये में तेल थोडा कम है, तु बस इतना बता कि अभी तेरा शाम कितना बाकी है? और जिस दिन जीतूँगी तुझसे मैं;तू पूछेगी मुझसे परेशान होकर, कि *शालिनी* अभी तेरा नाम कितना बाकी है? हम भी देखते हैं .... Shalini Rai